मज़हब - आकाश मिश्रा
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क्यूँ ये रिश्तों के बीच दीवारें पाट दीं
क्यूँ ये मज़हब की डोर धर्म से काट दीं
क्यूँ ये रोज़े उपवास ईद और दीवाली बाँट दी
रोशन ही तो था वो अनवर सूरज का
क्यूँ ये अंधेरे की चादर आँखो में छाँट दी
- आकाश मिश्रा
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