Tuesday, June 12, 2018

मज़हब - आकाश मिश्रा

मज़हब - आकाश मिश्रा
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क्यूँ ये रिश्तों के बीच दीवारें पाट दीं
क्यूँ ये मज़हब की डोर धर्म से काट दीं
क्यूँ ये रोज़े उपवास ईद और दीवाली बाँट दी
रोशन ही तो था वो अनवर सूरज का
क्यूँ ये अंधेरे की चादर आँखो में छाँट दी

- आकाश मिश्रा

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Friday, June 1, 2018

द्रड़ निश्चय - आकाश मिश्रा

द्रड़ निश्चय - आकाश मिश्रा
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निकलो अब अंडे से कुछ तो करके दिखलाओ
कृष्ण नहीं बन सकते तो तुम अर्जुन ही बन जाओ
मार्ग वो दिखला देंगे तुम विश्वास तो यू ना खोओ
कर्म करो फिर फल कि सोचो यू बिन मतलब ना रोओ

ज़ोर लगा दो सपनो में की दिक मंडल मुड़ जायें
पंख लगा दो अरमानो में वो क्षितिज तक उड़ जायें
तोड़ दो उन बाधाओं को जो मस्तक में बैठा है
जोड़ लो श्रम का वो धागा जो जाने क्यूँ ऐंठा है

कब तक एक कुएँ में अपना जीवन यों झोंकोगे
कब तक आने वाले इन अवसर को यों रोकोगे
जगो उठो अब तो अपनी क्षमता को तुम पहचानो
छिपे हुए असफलता के डर को अपने तुम जानो

निर्णय तुमको लेना है ये जीवन की माला है
मत सोचो बच निकलोगे ये चिंतन की ज्वाला है
अब तो निश्चय कर लो द्रड़ अब तो तुम जी जाओ
कृष्ण नहीं बन सकते तो तुम अर्जुन ही बन जाओ
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- आकाश मिश्रा
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