Friday, November 27, 2020

इश्क़ का इश्राक

 वक़्त गुज़रा मग़र फ़लसफ़ा अभी बाकी है।

उफ़्क तक इश्क़ का इश्राक अभी बाकी है

धड़कन रूह ज़ुबाँ अहसास जाने क्या क्या अभी बाकी है

तुझपे मरना और मरके जीना कई दफ़ा अभी बाकी है

Monday, November 16, 2020

इंसाँ

चटकती धूप चिलचिलाते पैरों को मैं खो गया
रूह को छोड़ मेरे कफ़स को ये गुमा हो गया

जहाज़ों को ख़रीद तूफानों को फूकने चला
चलो हटो ऐ दुनियावालों अब मैं जवाँ हो गया

सुर्ख स्याही सा जब हर गली खूँ बहने लगा
बिलखता मुल्क और सिसकता यूँ इंसाँ हो गया

साया था वो मेरा और मैं उसका इश्क ए क़ल्ब
कब मैं काफ़िर हुआ जाने वो कब मुसलमाँ हो गया