चटकती धूप चिलचिलाते पैरों को मैं खो गया
रूह को छोड़ मेरे कफ़स को ये गुमा हो गया
जहाज़ों को ख़रीद तूफानों को फूकने चला
चलो हटो ऐ दुनियावालों अब मैं जवाँ हो गया
सुर्ख स्याही सा जब हर गली खूँ बहने लगा
बिलखता मुल्क और सिसकता यूँ इंसाँ हो गया
साया था वो मेरा और मैं उसका इश्क ए क़ल्ब
कब मैं काफ़िर हुआ जाने वो कब मुसलमाँ हो गया
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